प्राचीन भारतीय धार्मिक साहित्य के मुख्य दो भाग हैं:
* श्रुति, * स्मृति
श्रुति : श्रुति का शाब्दिक अर्थ होता है - सुना हुआ । कुछ लोग श्रुति को गुरू-शिष्य परम्परा से जोड़कर देखते हैं क्योंकि शिष्य गुरू के सम्मुख बैठकर सीधे सुनता है।
ॠग्वेद - यह प्राचीनतम वेद है, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद,
वेदों को समझने के लिये उन्हें छह वेदांगों (वेदों के अंगों) में विभक्त किया गया है:
* शिक्षा - सम्यक् उच्चारण का ज्ञान कराती है, * छन्द, * व्याकरण, * निरुक्त, * ज्योतिष, * कल्प - कर्मकाण्ड से सम्बन्धित।
वेदों को एक भिन्न आधार पर निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है:
संहिता, ब्राह्मण।
पुन: ब्राह्मण के दो प्रभाग किए जाते हैं: अरण्यक और उपनिषद ।
* संहिता या मंत्र
* ब्राह्मण - इनमें सभी मंत्रों और कर्मकाण्ड के अर्थ की व्याख्या की गई है ।
* अरण्यक - मंत्रो की व्याख्या
* उपनिषद - वेदों का अंतिम और उपसंहारात्मक भाग
उपनिषद: उपनिषद वेदों के अत्यन्त दार्शनिक भाग हैं। चूंकि ये वेदों के अंतिम भाग हैं इसीलिए इन्हे वेदों का सार भी कहा जा सकता है। उपनिषद = उप + नि + षद ; जिसका अर्थ है पास बैठना ।
उपनिषदों को वेदान्त भी कहते हैं, जिसका अर्थ है वेदों का अंतिम भाग । दूसरा शब्द जो प्रयोग में आता है वह है - उत्तर मीमांसा, जिसका अर्थ है काल-क्रम में बाद की मीमांसा (इंक्वायरी) आज तक दो सौ से भी अधिक उपनिषद ज्ञात हैं। मुक्तिकोपनिषद में इनकी कुल संख्या १०८ गिनाई गई है। सभी उपनिषद किसी न किसी वेद से सम्बद्ध हैं। इनमें से १० ऋग्वेद से, १९ शुक्ल यजुर्वेद से, ३२ कृष्ण यजुर्वेद से, १६ सामवेद से और ३१ अथर्ववेद से सम्बद्ध हैं।
१०८ उपनिषदों में से प्रथम १० को मुख्य उपनिषद कहा जाता है; २१ उपनिषदों को सामान्य वेदांत , २३ उपनिषदों को सन्यास, ९ को शाक्त, १३ को वैष्णव , १४ को शैव तथा १७ उपनिषदों को योग उपनिषद की संज्ञा दी गयी है।
मुख्य उपनिषद निम्नलिखित हैं:
१. ईश - शुक्ल यजुर्वेद, २. केन - सामवेद, ३. कथा - कृष्ण यजुर्वेद, ४. प्रश्न - अथर्ववेद, ५. मुण्डक - अथर्ववेद, ६. मान्डूक्य - अथर्ववेद, ७. तैत्रेय - कृष्ण यजुर्वेद, ८. एत्रेय - ऋग्वेद, ९. छान्दोग्य - सामवेद, १०. वृहदारण्यक - शुक्ल यजुर्वेद।
स्मृति : स्मृति का शाब्दिक अर्थ है - याद किया हुआ । स्मृतियाँ एक बहुत लम्बे समयान्तराल में संकलित की गईं हैं और भिन्न-भिन्न विषयों से संबंधित हैं।
धर्मशास्त्रों को निम्नलिखित तीन मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है -
* आचार - कर्त्तव्य/अधिकार, * व्यवहार, * प्रायश्चित।
पिछली असंख्य सदियों में सहस्रों धर्मशास्त्र लिखे जा चुके हैं। कुछेक मुख्य धर्मशास्त्रों के नाम निम्नलिखित दिए गए हैं -
* अपस्तम्भ का धर्मशास्त्र, * गौतम का धर्मशास्त्र, * बौधयान का धर्मशास्त्र, * मनु स्मृति, * याज्ञवल्क्य स्मृति, * नारद स्मृति।
इतिहास : इतिहास ग्रंथों का संग्रह है. कई बार इतिहास पुराण के अंतर्गत आते हैं.
इतिहास में मुख्यत: निम्नलिखित ग्रंथ शामिल हैं- * रामायण, * महाभारत, * योगवाशिष्ठ, * हरिवंश।
पुराण : पुराण के मुख्य चरित्र मुख्यता पारपरिक है और तीन गुणों सत्व, राजस और तमस का वर्णन करते है.
पुराणों को निम्नलिखित चार श्रेणियों में विभक्त किया गया है- * महापुराण - प्रमुख पुराण, * उपपुराण - अन्य पुराण, * स्थलपुराण - विशिष्ट स्थलों से संबंधित पुराण और * कुलपुराण - वंशों से संबंधित पुराण।
मुख्य पुराणों में कुछ के नाम निम्नलिखित दिए गए हैं- * श्रीमदभागवत पुराण, * विष्णु पुराण, * देवी भागवत पुराण, * भविष्य पुराण, * मत्स्य पुराण, * कर्म पुराण, * ब्रह्म पुराण।
सूत्र - सूत्र सम्बंधित विषयों के मूलभूत सिद्धांत है। मुख्य सूत्रों में से कुछ नाम निम्नलिखित दिए गए हैं- योग सूत्र, न्याय सूत्र, ब्रह्म सूत्र, काम सूत्र, व्याकरण सूत्र, ज्योतिष सूत्र, सल्व सूत्र।
आगम - आगम अर्थात् आगमन। आगम मूलत: कर्मकाण्डों के नियम हैं.
दर्शन - दर्शन अर्थात् देखना अथवा अवलोकन करना। दर्शन की प्रकृति मुख्यत: आध्यात्मिक है. दर्शन के अंतर्गत अनेक सूत्र आते हैं.
* श्रुति, * स्मृति
श्रुति : श्रुति का शाब्दिक अर्थ होता है - सुना हुआ । कुछ लोग श्रुति को गुरू-शिष्य परम्परा से जोड़कर देखते हैं क्योंकि शिष्य गुरू के सम्मुख बैठकर सीधे सुनता है।
- श्रुति ही मुख्य धर्मग्रंथ मानी जातीं हैं।
- श्रुतियां अन्य सभी धर्मग्रंथों से श्रेष्ठ मानी जाती हैं।
- वेद प्रमुख रूप से श्रुतियों में गिने जाते हैं। कुछ लोग भागवत गीता को भी श्रुति ही मानते हैं।
ॠग्वेद - यह प्राचीनतम वेद है, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद,
वेदों को समझने के लिये उन्हें छह वेदांगों (वेदों के अंगों) में विभक्त किया गया है:
* शिक्षा - सम्यक् उच्चारण का ज्ञान कराती है, * छन्द, * व्याकरण, * निरुक्त, * ज्योतिष, * कल्प - कर्मकाण्ड से सम्बन्धित।
वेदों को एक भिन्न आधार पर निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है:
संहिता, ब्राह्मण।
पुन: ब्राह्मण के दो प्रभाग किए जाते हैं: अरण्यक और उपनिषद ।
* संहिता या मंत्र
* ब्राह्मण - इनमें सभी मंत्रों और कर्मकाण्ड के अर्थ की व्याख्या की गई है ।
* अरण्यक - मंत्रो की व्याख्या
* उपनिषद - वेदों का अंतिम और उपसंहारात्मक भाग
उपनिषद: उपनिषद वेदों के अत्यन्त दार्शनिक भाग हैं। चूंकि ये वेदों के अंतिम भाग हैं इसीलिए इन्हे वेदों का सार भी कहा जा सकता है। उपनिषद = उप + नि + षद ; जिसका अर्थ है पास बैठना ।
उपनिषदों को वेदान्त भी कहते हैं, जिसका अर्थ है वेदों का अंतिम भाग । दूसरा शब्द जो प्रयोग में आता है वह है - उत्तर मीमांसा, जिसका अर्थ है काल-क्रम में बाद की मीमांसा (इंक्वायरी) आज तक दो सौ से भी अधिक उपनिषद ज्ञात हैं। मुक्तिकोपनिषद में इनकी कुल संख्या १०८ गिनाई गई है। सभी उपनिषद किसी न किसी वेद से सम्बद्ध हैं। इनमें से १० ऋग्वेद से, १९ शुक्ल यजुर्वेद से, ३२ कृष्ण यजुर्वेद से, १६ सामवेद से और ३१ अथर्ववेद से सम्बद्ध हैं।
१०८ उपनिषदों में से प्रथम १० को मुख्य उपनिषद कहा जाता है; २१ उपनिषदों को सामान्य वेदांत , २३ उपनिषदों को सन्यास, ९ को शाक्त, १३ को वैष्णव , १४ को शैव तथा १७ उपनिषदों को योग उपनिषद की संज्ञा दी गयी है।
मुख्य उपनिषद निम्नलिखित हैं:
१. ईश - शुक्ल यजुर्वेद, २. केन - सामवेद, ३. कथा - कृष्ण यजुर्वेद, ४. प्रश्न - अथर्ववेद, ५. मुण्डक - अथर्ववेद, ६. मान्डूक्य - अथर्ववेद, ७. तैत्रेय - कृष्ण यजुर्वेद, ८. एत्रेय - ऋग्वेद, ९. छान्दोग्य - सामवेद, १०. वृहदारण्यक - शुक्ल यजुर्वेद।
स्मृति : स्मृति का शाब्दिक अर्थ है - याद किया हुआ । स्मृतियाँ एक बहुत लम्बे समयान्तराल में संकलित की गईं हैं और भिन्न-भिन्न विषयों से संबंधित हैं।
- स्मृति का स्थान श्रुति से नीचे है।
- यदि श्रुति और स्मृति के बीच कोई विरोधाभास होता है तो श्रुति ही मान्य होगी।
स्मृति के ६ मुख्य भाग हैं: १. धर्मशास्त्र, २. इतिहास, ३. पुराण, ४. सूत्र, ५. आगम, ६. दर्शन,
धर्मशास्त्र: - धर्मशास्त्रों में मनुष्य के कर्त्तव्यों को बताया गया है. अधिकांश धर्मशास्त्र वेदों की देन हैं.धर्मशास्त्रों को निम्नलिखित तीन मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है -
* आचार - कर्त्तव्य/अधिकार, * व्यवहार, * प्रायश्चित।
पिछली असंख्य सदियों में सहस्रों धर्मशास्त्र लिखे जा चुके हैं। कुछेक मुख्य धर्मशास्त्रों के नाम निम्नलिखित दिए गए हैं -
* अपस्तम्भ का धर्मशास्त्र, * गौतम का धर्मशास्त्र, * बौधयान का धर्मशास्त्र, * मनु स्मृति, * याज्ञवल्क्य स्मृति, * नारद स्मृति।
इतिहास : इतिहास ग्रंथों का संग्रह है. कई बार इतिहास पुराण के अंतर्गत आते हैं.
इतिहास में मुख्यत: निम्नलिखित ग्रंथ शामिल हैं- * रामायण, * महाभारत, * योगवाशिष्ठ, * हरिवंश।
पुराण : पुराण के मुख्य चरित्र मुख्यता पारपरिक है और तीन गुणों सत्व, राजस और तमस का वर्णन करते है.
पुराणों को निम्नलिखित चार श्रेणियों में विभक्त किया गया है- * महापुराण - प्रमुख पुराण, * उपपुराण - अन्य पुराण, * स्थलपुराण - विशिष्ट स्थलों से संबंधित पुराण और * कुलपुराण - वंशों से संबंधित पुराण।
मुख्य पुराणों में कुछ के नाम निम्नलिखित दिए गए हैं- * श्रीमदभागवत पुराण, * विष्णु पुराण, * देवी भागवत पुराण, * भविष्य पुराण, * मत्स्य पुराण, * कर्म पुराण, * ब्रह्म पुराण।
सूत्र - सूत्र सम्बंधित विषयों के मूलभूत सिद्धांत है। मुख्य सूत्रों में से कुछ नाम निम्नलिखित दिए गए हैं- योग सूत्र, न्याय सूत्र, ब्रह्म सूत्र, काम सूत्र, व्याकरण सूत्र, ज्योतिष सूत्र, सल्व सूत्र।
आगम - आगम अर्थात् आगमन। आगम मूलत: कर्मकाण्डों के नियम हैं.
दर्शन - दर्शन अर्थात् देखना अथवा अवलोकन करना। दर्शन की प्रकृति मुख्यत: आध्यात्मिक है. दर्शन के अंतर्गत अनेक सूत्र आते हैं.